मेरी विद्यार्थियों से प्रार्थना है कि वे छिन्न-विछिन्न कल्पनाओं में न बहें । आपको देश का स्तम्भ कहा जाता है, किन्तु देश ऐसे स्तम्भों पर खड़ा नहीं होता अतएव, मैं केवल इतना ही कहूँगा कि आप देश के सेवक बनें पूरी शक्ति से देश निर्माण कार्य में लगें । केवल वही राष्ट्र प्रगति में अग्रणी होता है। जहाँ की युवा शक्ति अपनी क्षमता का एक-एक कण राष्ट्र की प्रगति के लिए दाँव पर लगाती है। मैं आग्रह करता हूँ कि स्वयं की प्रसिद्धि, सम्पत्ति एवं अधिकार की अभिलाषा देश की वेदी पर न्यौछावर करें । इसी में देश की समृद्धि, स्वयं का सौख्य एवं समाज का गौरव है।
- श्री गुरुजी
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